ये मेरा तुम से वादा है, जो बोया है सो काटोगे तुम देखोगे..." नज्म से शुरू हुई फिदा हुसैन की महफ़िल ने लोगों को वर्तमान पर सोचने को मजबूर कर दिया ।


बाराबंकी 19 अगस्त । "ये मेरा तुम से वादा है, जो बोया है सो काटोगे तुम देखोगे..." नज्म से शुरू हुई फिदा हुसैन की महफ़िल ने लोगों को वर्तमान पर सोचने को मजबूर कर दिया ।
मौका था आँखेँ इण्डिया द्वारा नगर के लोहिया भवन लखपेड़ाबाग में गोरखपुर विश्व विद्यालय हिंदी विभाग प्रोफेसर डॉ राजेश मल्ल की अध्यक्षता में शायर डॉ फ़िदा हुसैन की गजलों को समर्पित एक हसीन शाम का ।प्रदीप सारंग ,मो सबाह  व हरिप्रसाद वर्मा द्वारा आयोजित इस साहित्यिक आयोजन में डॉ हुसैन ने मजदूरों और किसानों की दशा और व्यथा कुछ यूं बयां किया-
"महलों के बनाने वाले खुद झोपड़ पट्टी में रहते हैं
खेतों को मवेशी चरते हैं और भूख  से इन्सां मरते हैं..."
    शेरों शायरी और गजलों की इस  महफ़िल में लखनऊ के मशहूर शायर  मलिक जाबेद ,राम प्रकाश बेखुद ,संजय मिश्रा, मो मूसा खां अशांत ,आदर्श बाराबंकवी , रेहान अल्वी आदि ने भी कलाम पेश किए। 
      इस कार्यक्रम में कर्मचारी नेता बाबू लाल वर्मा ,रालोद नेता वृजेश सोनी ,वीरेंद्र वर्मा नेवली, सदानन्द भनौली ,अब्दुल खालिक ,सतेंद्र व अंशिका श्रीनिवास प्रमुख रूप से उपस्थित रहे ।