अमेरिका ने इस्राइल पर बदली अपनी नीति, वेस्ट बैंक कब्जे को दी मान्यता, फिलिस्तीन बोला- यह घातक फैसला

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृ्त्व में अमेरिका ने इस्राइल के प्रति अपनी नीतियों में बड़ा बदलाव किया है। ट्रंप प्रशासन ने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय की नीति में परिवर्तन करते हुए इस्राइल के वेस्ट बैंक और पूर्व येरुशलम  पर कब्जे को मान्यता दे दी है। 



अमेरिकी रक्षा मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि अमेरिका अब वेस्ट बैंक में इस्राइली बस्तियों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन के तौर पर नहीं देखता। पोम्पियो ने कहा कि वेस्ट बैंक के कारण ही इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद रहा है। बार-बार इन बस्तियों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कहने का कोई फायदा नहीं हुआ। इसकी वजह से शांति की कोशिशें भी नहीं हुई हैं। 

बेंजामिन नेतन्याहू बोले- यह ऐतिहासिक गलती में सुधार जैसा
इस्राइल की तरफ से अमेरिका के इस फैसले का स्वागत किया गया है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि यह ऐतिहासिक गलती को सही करने जैसा है। साथ ही उन्होंने अन्य देशों से भी अपील की कि वह इस फैसले को मानें।
हालांकि फिलिस्तीन की तरफ से वेस्ट बैंक के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे साएब एरकेत ने कहा कि अमेरिकी सरकार का यह फैसला वैश्विक स्थिरता, सुरक्षा और शांति के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि इस तरह का निर्णय अंतरराष्ट्रीय कानून को जंगल के कानून से बदले जैसा है। 



क्या है वेस्ट बैंक सेटलमेंट विवाद?
वेस्ट बैंक में इस्राइली बस्तियों का विवाद इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद का सबसे बड़ा कराण है। 1967 में हुए तीसरे अरब-इस्राइल युद्ध में इस्राइल ने अपने तीन पड़ोसी देशों सीरिया, मिस्र और जॉर्डन को हराया था। इसके बाद इस्राइल ने वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। उसने वहां 140 बस्तियां बना दी थीं। वर्तमान समय में इस इलाके में करीब छह लाख यहूदी रहते हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत इन बस्तियों को अवैध करार दिया जाता है, हालांकि इस्राइल इन्हें अपना हिस्सा मानता रहा है।  
फिलिस्तीनी नेताओं की तरफ से लंबे समय से इन बस्तियों को हटाने की मांग की जा रही हैं। उनका कहना है कि वेस्ट बैंक में यहूदियों के रहने से उनका भविष्य में आजाद फिलिस्तीन का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। इसको लेकर फिलीस्तीन ने कई बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद मांगी है।
इजराइल-फिलीस्तीन विवाद पर अमेरिका का नजरिया?
1978 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने निर्णय लिया था कि वेस्ट बैंक में इस्राइली बस्तियां अतंरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करती हैं। 1981 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने कार्टर प्रशासन के फैसले को गलत मानते हुए कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि बस्तियों पर इस्राइल का शुरुआत से कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद अमेरिका ने अपनी स्थिति में बदलाव करते हुए इस्राइल के कब्जे को अवैध की जगह अनुचित माना था। इसके जरिए अमेरिका ने इस्राइल को लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से भी बचाया है। 
ओबामा ने 2016 में  में बदला इस्राइल को लेकर पक्ष     
2016 के अंत में संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाया गया, जिसमें इस्राइल के अवैध कब्जों को खत्म करने की मांग की गई। तब तत्कालीन ओबामा प्रशासन ने इस्राइल के समर्थन की नीति में बदलाव करते हुए इस प्रस्ताव पर वीटो करने से इनकार कर दिया। हालांकि, ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद से लगातार इस्राइल का समर्थन किया है। पोम्पियो के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने सभी विवादों को समझने के बाद रीगन के 38 साल पहले वाले निर्णय को सबसे सही पाया।