ब्रेन, लिवर, हड्डी और शरीर के अन्य आंतरिक हिस्से में बनने वाले फोड़े का अब सटीक इलाज हो सकेगा। केजीएमयू में ऐनेरोबिक कल्चर टेस्ट शुरू हो गया है। इस टेस्ट से शरीर के अंदर फोड़े के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया की पहचान किया जाएगा और उसी हिसाब से एंटीबायोटिक्स देकर बैक्टीरिया का खात्मा कर दिया जाएगा
जांच शुरू करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग में एक नई मशीन भी लगाई गई है। एक माह के प्रायोगिक टेस्ट में सफलता मिलने के बाद अब सभी विभाग ऐसे मरीजों को टेस्ट के लिए भेजेंगे। इससे संक्रमण नियंत्रित करने में आसानी होगी।
अभी तक मरीजों के किसी आंतरिक हिस्से में फोड़ा होने पर लक्षण के आधार पर एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं। पस में ऐनेरोबिक बैक्टीरिया रहते हैं तो सभी एंटीबायोटिक्स कारगर नहीं होती हैं। ऐसी स्थिति में मरीज की हालत सुधारने के बजाय बिगड़ने लगती है। बार-बार हाई डोज देने से एंटीबायोटिक्स का रेजिस्टेंस हो जाता है और उसका असर मरीज पर नहीं होता है।
इस जांच से यह भी पता चल जाएगा कि एनोरोबिक बैक्टीरिया पर कौन सी एंटीबायोटिक्स कारगर होगी। फिर उसी से मरीज का इलाज किया जाएगा। मरीज के किसी अंग में फोड़ा होने, पथरी होने पर किसी तरह की जटिलता दिखने, दांत के गंभीर संक्रमण, ब्रेन के किसी हिस्से में फोड़ा होने, मेनेनजाइटिस, साइनसाइटिस, आस्टियोसाइटिस, पेरियोनाइटिस बीमारियों में इस जांच की जरूरत पड़ती है।
इस जांच से यह भी पता चल जाएगा कि एनोरोबिक बैक्टीरिया पर कौन सी एंटीबायोटिक्स कारगर होगी। फिर उसी से मरीज का इलाज किया जाएगा। मरीज के किसी अंग में फोड़ा होने, पथरी होने पर किसी तरह की जटिलता दिखने, दांत के गंभीर संक्रमण, ब्रेन के किसी हिस्से में फोड़ा होने, मेनेनजाइटिस, साइनसाइटिस, आस्टियोसाइटिस, पेरियोनाइटिस बीमारियों में इस जांच की जरूरत पड़ती है।
काबू में होगा गंभीर मरीजों में इंफेक्शन
ऐनेरोबिक कल्चर टेस्ट शुरू होने से गंभीर मरीजों में होने वाले इंफेक्शन को नियंत्रित किया जा सकेगा। साथ ही धुआंधार एंटीबायोटिक्स के प्रयोग में भी कमी आएगी। इसकी जांच के लिए मरीज के जिस हिस्से में समस्या होती है, वहां से पस अथवा टिश्यू के सैंपल लिए जाते हैं। शरीर के आंतरिक हिस्से में समस्या होने पर सेंपल लेने के लिए बायोप्सी जैसी तकनीक का प्रयोग किया जाता है। लिवर और ब्रेन से सैंपल लेने के लिए मरीज को कुछ समय के लिए भर्ती किया जाता है। - एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शीतल वर्मा, माइक्रोबायोलॉजी विभाग