यूपी पावर कॉर्पोरेशन के पीएफ घोटाले की जांच तत्कालीन एमडी एपी मिश्रा और ब्रोकर फर्मों के इर्द- गिर्द सिमटती जा रही है। ईओडब्ल्यू को चार ब्रोकर फर्मों के मालिकों के बारे में जानकारी मिल गई है। इनको पूछताछ के लिए बुलाया गया है।
फिलहाल पूरे मामले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के गिरेबां तक हाथ डालने का साहस नहीं जुटा पा रही है। सूत्रों का कहना है कि डीएचएफएल ने ईओडब्ल्यू को यूपीपीसीएल के मामले में हुए सभी ट्रांजेक्शन का ब्योरा सौंप दिया है।
बताया गया है कि निवेश में ब्रोकर की भूमिका निभाने वाली फर्मों को कमीशन के तौर पर सात से आठ किस्तों में भुगतान किए गए। ईओडब्ल्यू ने डीएचएफएल से यह भी पूछा है कि कमीशन देने का पैमाना क्या था और जिन फर्मों को बतौर ब्रोकर शामिल किया गया, उनका आधार क्या था?
ईओडब्ल्यू बैंकों से पहले ही इन फर्मों के खातों तथा खाता संचालक का ब्योरा तलब कर चुकी है। हालांकि छुट्टियों की वजह से ब्योरा मिलने में देरी हो रही है। उधर, ट्रस्ट के पूर्व सचिव पीके गुप्ता के बेटे अभिनव गुप्ता से ईओडब्ल्यू के अधिकारी लगातार पूछताछ कर रहे हैं।
बताया गया है कि निवेश में ब्रोकर की भूमिका निभाने वाली फर्मों को कमीशन के तौर पर सात से आठ किस्तों में भुगतान किए गए। ईओडब्ल्यू ने डीएचएफएल से यह भी पूछा है कि कमीशन देने का पैमाना क्या था और जिन फर्मों को बतौर ब्रोकर शामिल किया गया, उनका आधार क्या था?
ईओडब्ल्यू बैंकों से पहले ही इन फर्मों के खातों तथा खाता संचालक का ब्योरा तलब कर चुकी है। हालांकि छुट्टियों की वजह से ब्योरा मिलने में देरी हो रही है। उधर, ट्रस्ट के पूर्व सचिव पीके गुप्ता के बेटे अभिनव गुप्ता से ईओडब्ल्यू के अधिकारी लगातार पूछताछ कर रहे हैं।
अभिनव ने ही तय किया था किस फर्म कितना कमीशन देना है
सूत्रों के अनुसार, निवेश में यूपीपीसीएल और डीएचएफएल के बीच बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले अभिनव ने ही तय किया था कि किस फर्म को बतौर ब्रोकरेज कितना कमीशन देना है। अभिनव ने ब्रोकर फर्मों के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी दी है।
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के बहुत ही करीबी रिश्तेदार की फर्म भी इस पूरे खेल में शामिल थी। सूत्रों का कहना है कि अभिनव की गिरफ्तारी तय मानी जा रही है, लेकिन उसे किन धाराओं में गिरफ्तार किया जाए, इस पर ईओडब्ल्यू के जांच अधिकारी एकमत नहीं हो पा रहे हैं।
ईओडब्ल्यू के अधिकारी जेल भेजे गए ट्रस्ट के पूर्व सचिव पीके गुप्ता, यूपीपीसीएल के पूर्व वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी और तत्कालीन एमडी एपी मिश्रा से जुड़े दस्तावेजों (केस डायरी) को न्यायालय में पेश करने की तैयारी कर रही है ताकि इनको जमानत न मिल सके।
ईओडब्ल्यू की अभी तक की जांच में एपी मिश्रा को ही इस पूरे घोटाले का मुख्य किरदार माना जा रहा है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है किदिसंबर 2016 में एपी मिश्रा ने ही पीएफ के पैसों को पीएनबी हाउसिंग में निवेश करने का रास्ता खोला था।
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के बहुत ही करीबी रिश्तेदार की फर्म भी इस पूरे खेल में शामिल थी। सूत्रों का कहना है कि अभिनव की गिरफ्तारी तय मानी जा रही है, लेकिन उसे किन धाराओं में गिरफ्तार किया जाए, इस पर ईओडब्ल्यू के जांच अधिकारी एकमत नहीं हो पा रहे हैं।
ईओडब्ल्यू के अधिकारी जेल भेजे गए ट्रस्ट के पूर्व सचिव पीके गुप्ता, यूपीपीसीएल के पूर्व वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी और तत्कालीन एमडी एपी मिश्रा से जुड़े दस्तावेजों (केस डायरी) को न्यायालय में पेश करने की तैयारी कर रही है ताकि इनको जमानत न मिल सके।
ईओडब्ल्यू की अभी तक की जांच में एपी मिश्रा को ही इस पूरे घोटाले का मुख्य किरदार माना जा रहा है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है किदिसंबर 2016 में एपी मिश्रा ने ही पीएफ के पैसों को पीएनबी हाउसिंग में निवेश करने का रास्ता खोला था।
... तो एपी मिश्रा 22 मार्च 17 से पहले नहीं थे सीपीएफ ट्रस्ट का हिस्सा!
हालांकि पूछताछ में एपी मिश्रा ने ईओडब्ल्यू को बताया था कि वह 22 मार्च 2017 से पहले सीपीएफ ट्रस्ट का हिस्सा ही नहीं थे। 22 मार्च 2017 को जारी एजेंडा में नंबर दो पर विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में मिश्रा के शामिल किए जाने का जिक्र है।
उससे पहले डीएचएफएल में निवेश करने का जो फैसला हुआ, उससे उनका कोई मतलब नहीं था। उन्होंने यह भी बताया था कि यूपीपीसीएल का चेयरमैन ही ट्रस्ट का चेयरमैन होता है।
17 मार्च को जब पहली बार 18 करोड़ रुपये का निवेश डीएचएफएल में किया गया था, उस समय ट्रस्ट में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। 22 मार्च के बाद वह इस्तीफा दे चुके थे। ऐसे में इस पूरे घोटाले में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
पूछताछ में एपी मिश्रा ने यह भी बताया था कि जीपीएफ ट्रस्ट में वह ट्रस्टी जरूर थे, लेकिन निवेश कहां होगा, इसकी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं थी। इसके लिए बोर्ड ने लिखित रूप से ट्रस्ट के सचिव और निदेशक वित्त को अधिकृत किया था।
उससे पहले डीएचएफएल में निवेश करने का जो फैसला हुआ, उससे उनका कोई मतलब नहीं था। उन्होंने यह भी बताया था कि यूपीपीसीएल का चेयरमैन ही ट्रस्ट का चेयरमैन होता है।
17 मार्च को जब पहली बार 18 करोड़ रुपये का निवेश डीएचएफएल में किया गया था, उस समय ट्रस्ट में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। 22 मार्च के बाद वह इस्तीफा दे चुके थे। ऐसे में इस पूरे घोटाले में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
पूछताछ में एपी मिश्रा ने यह भी बताया था कि जीपीएफ ट्रस्ट में वह ट्रस्टी जरूर थे, लेकिन निवेश कहां होगा, इसकी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं थी। इसके लिए बोर्ड ने लिखित रूप से ट्रस्ट के सचिव और निदेशक वित्त को अधिकृत किया था।
घोटाले में सफेदपोशों के भी शामिल होने की आशंका, लेकिन नहीं मिल रहे सुबूत
जानकारी के अनुसार, अभी तक की जांच में कुछ सफेदपोश लोगों के नाम भी सामने आए हैं। हालांकि लिखा-पढ़ी में इसका कोई सुबूत जांच एजेंसी को नहीं मिल पा रहा है। इन सफेदपोशों की पहुंच काफी ऊंची बताई जा रही है। ईओडब्ल्यू के अधिकारी मंथन कर रहे हैं कि जांच में किस तरह आगे बढ़ा जाए।
संजय अग्रवाल को सवाल भेजकर मंगाए जा सकते हैं जवाब
इस मामले में यूपीपीसीएल के पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल से पूछताछ का तरीका ईओडब्ल्यू नहीं तलाश पा रही है। फिलहाल तीन विकल्पों पर मंथन किया जा रहा है। पहला, संजय अग्रवाल को नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया जाए।
दूसरा, दिल्ली जाकर संजय अग्रवाल से पूछताछ की जाए और तीसरा, संजय अग्रवाल को डाक से सवाल भेजकर उनके जवाब मांगे जाएं।
संजय अग्रवाल को सवाल भेजकर मंगाए जा सकते हैं जवाब
इस मामले में यूपीपीसीएल के पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल से पूछताछ का तरीका ईओडब्ल्यू नहीं तलाश पा रही है। फिलहाल तीन विकल्पों पर मंथन किया जा रहा है। पहला, संजय अग्रवाल को नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया जाए।
दूसरा, दिल्ली जाकर संजय अग्रवाल से पूछताछ की जाए और तीसरा, संजय अग्रवाल को डाक से सवाल भेजकर उनके जवाब मांगे जाएं।