अल्लाह ने किसी ग़ैर ए मासूम को अपना वसीला नहीं बनाया -- मौलाना सै. मीसम ज़ैदी




" इल्म ए ग़ैब ही नहीं ,मारफ़त ए नूर रखने वाले को अबूतालिब कहते हैं

बाराबंकी । अल्लाह ने किसी ग़ैर ए मासूम को अपना वसीला नहीं बनाया । इल्म ए ग़ैब ही नहीं ,मारफ़त ए नूर रखने वाले को अबूतालिब कहते हैं ।यह बात आली जनाब मौलाना सै. मीसम ज़ैदी साहब क़िबला ने करबला सिविल लाइन में मजलिसे बरसी बराये ईसाले सवाब वासिफ़ रज़ा इब्ने आरिफ़ रज़ा मरहूमको खिताब करते हुए कही । उन्होंने यह भी कहा कि अल्लाह ने जब भी किसी को अपना वसीला बनाया तो कुरआन में हम का इस्तेमाल किया ।अपने नबी की परवरिश व हिफ़ाज़त की बात की तो भी  हम का इस्तेमाल किया यानी अबूतालिब और औलाद ए अबूतालिब मासूम हैं।वो भी खानदान ए इमरान से हैं।उन्होंने आगे कहा सबसे पहली मीलाद जनाबे फ़ातिमा बिन्ते असद ने पढ़ी,क्योंकि विलादत के वख़्त के वाक़ये को बयान करने को मीलाद कहते हैं।जनाब ए अबूतालिब ने मीलाद सुना और तारीफ़ करते हुए दुआ भी दी कि आज से तीस साल बाद ख़ुदा तुम्हें भी ऐसा ही बेटा अता करेगा । ठीक तीस साल बाद अली अ.दुनियां में आए।आख़िर में अबल फ़ज़्ल मौला अब्बास के मसाएब बयान किये ।जिसे सुनकर मोमनीन रोने लगे।मजलिस से पहले ख़ुर्शीद फ़तेह पुरी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा - कोई किसी का हो न हो लेकिन ख़ुदा तो है।हल्लाले मुश्क़िलात मुश्किल कुशा तो है। उस्ताद शायर डा.रज़ा मौरानवी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा -  नालये सब्र को कब  देखिये  इंसाफ़  मिले , मुर्दा आवाज़ों को ज़िन्दा तो किया है उसने।अजमल किन्तूरी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा - देख कर शब्बीर को मक़्तल में महवे इम्तेहां, ख़ुद को साक़ित कर लिया था वख़्त की रफ़्तार ने।मुहिब रिज़वी ने अपना  बेहतरीन कलाम पेश करते हुए पढ़ा -  मक़्तले जामे शहादत ज़ेब तन करके मुहिब, रूह जिस्मों से निकल आई बदन पहने हुए।महदी बाराबंकवी ने अपना कलाम पढ़ा - कहां से लाऊं वो अल्फ़ाज़ मदहे मौला में,मुझे हुसैन में कुल क़ायनात मिलती है ।सरवर अली करबलाई ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा - छोड़ कर दुनियां की लालच राहे हक़ पर चल पड़ो, है सफ़र मुश्किल मगर मंज़िल तो पा ली जायेगी । इसके अलावा अदनान रिज़वी, अयान अब्बास व कासिम ने भी नज़रानये अक़ीदत पेश किया।मजलिस का आग़ाज़ अयान अब्बास ने तिलावत ए कलाम ए इलाही से किया। निज़ामत के फ़राएज़ डा. रज़ा मौरानवी ने अंजाम दिए ।बानियान ए मजलिस ने सभी का शुक़्रिया अदा किया ।